- हम जो नही है , स्वयं को वह मानना आत्म प्रवंचना है ।
- अनिच्छा होते हुए भी हमे एक नियमित दैनन्दिन कार्यक्रम का पालन करना चाहिए ।
-सर्वदा कार्य में लगे रहना चाहिए उससे देह , मन ठीक रहता है ।
-तुम जो सोचोगे परिणाम में वही बनोगे ।
-परनिंदा नहीं करना चाहिए । परनिंदा से स्वयं की अवनति होती है ।
-जगत का इतिहास कुछ पवित्र , चरित्रवान, एवं श्रध्दा सम्पन्न लोगो का इतिहास है।
-हमे तीन चीजो की आवश्यकता है । अनुभव करने के लिए ह्रदय , धारना करने के लिए मस्तिष्क और काम करने के लिए हाथ ।
-यदि तुम पवित्र हो, यदि तुम बलवान हो तो तुम अकेले ही संपूर्ण जगत के समकक्ष हो सकते है ।
-एकाग्र मनवाला व्यक्ति जिस वस्तु पर भी चिंतन करता है, वह तत्काल उसके समाधान को प्राप्त कर लेता है।
-प्रकृति से विद्रोह , प्रकृति से संघर्ष, संग्राम यही जीवन है । प्रकृति की दासता तो मृत्यु है।
-सभी प्रकार की निष्ठा का आधार है - सच्चे ह्रदय से चाह रखना ।
-क्या तुम एक विद्वान या महान चिंतक बनना चाहते हो ? इसके लिए तुम्हे अपने पाठ्य विषय के प्रति प्रगाढ़ प्रेम विकसित करना आवश्यक है।
-एक बार अपने चयनित विषय के प्रति तीव्र प्रेम का विकास हो जाने पर तुम स्वयं देखोगे की तुम्हारे सम्मुख नये नये विचार क्रमशः खुलते ही जा रहे है।
-दुर्बल मस्तिष्क कुछ नहीं कर सकता , हमको अपने मस्तिष्क को बलवान बनाना होग।
-बलवान व्यक्ति वह है जो जीवन की सभी आपदाओ में निर्विकार बना रहे।
-हमे अपने आदर्श हेतु एकनिष्ठ व्याकुलता करनी चाहिए अन्यथा हम निष्ठावान नहीं बन सकते ।
-संदेहशील भाव से हम जो भी ग्रहण करते है, वह दूरगामी नहीं होगा ।
-शब्दो की अपेक्षा उदाहरण बेहतर शिक्षा देती है ।
-जिसके पास कुछ न हो , उसका त्याग कोई अर्थ नहीं रखता ।
-यह हमारी आदत हो गयी है की हम एक दृष्टि से महान व्यक्ति को सभी दृष्टियों से महान समझ बैठते है ।
-हमारे बाहय क्रियाकलापो से हमारे विचारो और उद्देशो की झलक मिलती है ।
-स्वजनों तथा अन्य लोगो के बीच भेदभाव अज्ञान तथा देहासक्ति के कारन उपजता है तथा यह ईश्वरीय ज्ञान का विरोधी है ।
-हममे मुक्ति की दृढ़ भावना होनी चाहिये। हमे कभी ऐसा नहीं लगना चाहिए की हम किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के प्रति आसक्त है ।
-अध्यत्मिकता में प्रगति लाभ करने के लिए ब्रम्हचर्य का अभ्यास नितांत आवश्यक है ।
-सामान्य मनुष्य में शक्ति और धैर्य दोनों संतुलित मात्रा में होने चाहिए ।
-दोष देखना बड़ा ही सहज है, गुण देखना महापुरुषो का धर्म ।
-बालक सम सरल हो लेकिन मूर्ख नहीं ।
-हमें बालक की पवित्रता और सरलता के साथ पौढ़ व्यक्ति की बुध्दिमत्ता और परिपक्वता का समन्वय करना चाहिए ।
-विषय में जितना आसक्त होते हो विषय संबंधी ज्ञान भी उतना ही होता है ।
-ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक ही मार्ग है वह है एकाग्रता ।
-ध्यान के अभ्यास से मानसिक एकाग्रता प्राप्त होती है ।
-कड़े ब्रम्चार्य के पालन से कोई भी विद्या अल्प समय में अवगत हो जाता है ।
-स्वतंत्रता ही उन्नति का प्रथम शर्त है ।
-दुसरो पर निर्भर रहना बुध्दिमान का कार्य नहीं है आत्मनिर्भर रहना ही बुध्दिमान का कार्य है ।
-सत्वगुण के लक्षण है- मुखमंडल पर चमक , हृदय में अदम्य उत्साह , अतुल चपलता।
-तमोगुण के लक्षण है - आलस्य , जड़ता , मोह तथा निद्रा आदि ।
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